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Friday, June 25, 2010

कविता लिखना जारी है ............

    बीत गए दिन कविता लिखते 
     पढ़ना तो जैसे भूल गए 
      क्या करना औरों का पढ़कर 
मनो हम पंडित हो गए 

हुए शिकार गलतफहमी के कब 
यह तो पता न चल पाया 
प्रशंसा पाकर फूली न समाई 
सफ़र लिखने का चल पड़ा

ऐसे ही एकदिन लिखने बैठी 
तो दिमाग शून्य सा हो गया 
भाव व्यंजना शब्द तो जैसे 
मीलों दूर छूट  गया 

अपने पर जो गर्व था मुझको 
चूर्ण-विचूर्ण हो गया 
पठान-पाठन की महत्ता को 
मैंने तो बस जान लिया 

आदत जो लिखने कि थी मुझको 
अब थोड़ा मद्धिम पड़ गया है 
अब पढ़ना आरंभ कर दिया है 
पर कविता लिखना जारी है 

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