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Wednesday, August 21, 2013

गरीब नहीं कहलाएंगे.....

योजना आयोग ने एक अजीब सा फैसला सुनाया की  गांवों में प्रतिव्यक्ति 26 की जगह 27.2 और शहरों में 32 की जगह 33.3 रुपये से ज्यादा खर्च करनेवाले गरीब नहीं कहलाएंगे। कॉंग्रेस नेता तो ए कहा रहे है कि मुंबई में 12 तो दिल्ली में 5 रुपए में  भर पेट खाना मिलता है |योजना आयोग जिन आंकड़ों को पहले खारिज कर चुका है उन्हीं आंकड़ों को दुबारा थाली मे सजाकर सस्ते मे परोस दिया गया |सरकार लगता है इस बार अपने इन आंकड़ों मे बुरी तरह से फंस गयी | इसे लेकर सियासी विवाद दिनों दिन गहराता  जा रहा है |ए बत समझ से परे है की जब 1/- 5/- और 12 रुपये मे भरपेट खाना मिल जाता है तो आनन-फानन खाद्य-सुरक्षा बिल लाने की आवश्यकता ही क्यों पड़ी ?कॉंग्रेसी नेता ए कहकर पल्ला झाड़ रहे है कि विरोधी पार्टी का काम है हल्ला मचाना मानो इनके हर योजना इतने ही सशक्त और जनतापरक होते है की आम जनता की खुशी विरोधी पार्टियों से सहा नही जा रहा है |-योजना आयोग के आंकड़े सुरेश तेंडुलकर कमेटी के सुझावों पर आधारित हैं। इसकी फिर से पड़ताल करने का जिम्मा सी. रंगराजन समिति को सौंपा गया है। उसे जून 2014 में रिपोर्ट देना है।सरकार को किस बात की जल्दी है यह आम जनता भली-भांति समझ रही है |वैसे सत्ताधारियों के दिमाग की दाद देनी चाहिये केवल आंकड़ों की हेराफेरी करके देश मे  गरीबों की संख्या कम दिखा दिया , ताकि सरकारी योजनाओं का फायदा कम लोगों को मिल पाए।'यहाँ तक कि सरकार इस कदर भयभीत है कि आरटीआई के दायरे से राजनीतिक दलों को बाहर रखने के लिए नया संशोधन का मजमून जल्द ही कैबिनेट में लाने वाली है। योजना आयोग ने अब यह मान लिया है की इस देश में एक ग्रामीण व्यक्ति जो पहले २६ रुपिया रोज मजदूरी कमाता था अब यदि आज उससे एक रूपया अधिक कमाएगा तो गरीब नहीं कहलायेगा माननीय काबिल अर्थशास्त्री द्वारा गरीबी दूर करने का ये अकाट्य तरीका काबीले तारीफ है इससे अप सब भी सहमत होंगे |अब तो फैसला लेना है कि........

 बुझा हुआ मशाल जला दो 
आग की ज्वाला बढ़ा दो 
देश राग गुनगुनाकर 
एक नवीन ज्योत जला दो 

राग दीपक फिर है सुनना 
ताप में फिर से है जलना 
प्रलय आंधी भेद कर फिर-
से है तम को जगमगाना 

नेह-दीपक तुम गिराओ 
मन शहीदी को जगाओ 
ललकार जागा हर तरफ से 
विद्रोह पताका ...फहराओ 

भ्रष्टता का होवे अंत 
दंड मिलना है तुरंत 
हर लौ में विप्लव की हुंकार 
गृहस्थ हो या हो वो संत 

एक चिंगारी ही है काफी 
बढ़ेंगे हम मनुज जाति 
निर्भय-निर्भीक-निडर है हम 
आन्दोलन करना है बाकी 

जीतेंगे हम हर तरफ से 
कुरीतियों से-हैवानियत से 
लक्ष्य है सुराज लाना 
क्रांति-पथ या धर्मं-पथ से 

जाने न देंगे हम ये बाजी 
मरने को  हम सब है राजी 
केसरी चन्दन का टीका-
कफ़न सर पे हमने बाँधी

Sunday, August 18, 2013

किताबें मुझसे सवाल करती है...........

अक्सर ऐसा लगता है की अलमारियों में बंद किताबें मुझसे सवाल करती  है 'क्या अब मेरी ज़रुरत ख़त्म हो गयी ?क्या अब इतिहास से कुछ सीखना नहीं है ?या भूगोल की परिधियाँ अब किसी काम की नहीं रही ।
क्या विज्ञानं में ज्ञान की बाते अब कुछ अवशेष नहीं रहे ? लेखक या साहित्यकारों में अब रूचि नहीं रही ।फिर किस कारण किताबों को कैद कर रखा है । शायद उसे पता नहीं इतिहास पुरुष अब भी जिंदा है। भूगोल की परिधियाँ निश्चित दिशा में क्रियाशील है । विज्ञान का क्षेत्रफल पहले से कही व्यापक हो गया है ।पर अब हम आभासी दुनिया में जीने लगे है । अब ज्ञान केवल किताबों की मोहताज नहीं रही । अब हम इंटरनेट की दुनिया में पदार्पण कर चुके है ।रिश्ते भी किताबों में बंद नहीं रही  हालांकि किताब ही इस दुनिया का आधार है पर अब हमारे पास इन्टरनेट है  । 

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